Monday, March 24, 2008

स्पर्श...

वो उष्मा थी या ऊर्जा नहीं जानता बस एक स्पर्श से मैंने ख़्वाहिशों को जलते देखा है एक आग जो राख नहीं करती मैंने दिल के पत्थर को कुंदन में बदलते देखा हैवो हँसती है तो सूखी नदी भी उन्मादित होकर बह उठती हैवो उदास थी........ मैंने समन्दर को सिकुड़ते देखा हैवो छू ले तो पत्थर भी जी उठे उसकी नजदीकी को मदहोशऔर दूरी को तड़पते हुए देखा हैमैं उसे देखूँ या हवाओं को मैंने साँसों को रुकते और तूफानों को पलटते हुए देखा हैउस एक स्पर्श में न जाने क्या जादू थामैंने रात भर खुद को छूकर देखा है.............

बहुत खोया हैं मैने, जिन्दगी को.....

बहुत खोया हैं मैने, जिन्दगी को जिन्दगी के वास्तेमगर पायी नहीं कोई खुशी इस जिन्दगी के वास्तेभटकता फिर रहा हूँ मैं, यहाँ रिश्तो के जंगल मेंन इसको पा सका अब तक,इस दुनिया के समुन्दर मेंमेरे हालत पहले से भी बदतर हों गये याराबहुत अरसा लगेगा रात से अब सहर होने मेंबहुत रोया यहाँ मैं ,आदमी बन आदमी के वास्ते मगर पाया नहीं ..........................................हैं काफी वक्त खोया बुत यहाँ अपना बनाने में नजर में भा सका न ये किसी के इस जमाने में किया जज्बात के बाजार में सौदा बहुत यारा कहीं पे रहा गयी कोई कमी इसको सजाने मेंबहुत तडफा यहाँ इन्सान बन इंसानियत के वास्तेमगर पाया नहीं

Saturday, March 15, 2008

माँ.......


मैं कभी बतलाता नहीं

पर अँधेरे से डरता हूँ मैं माँ

यूँ तो मैं,दिखलाता नहीं

तेरी परवाह करता हूँ मैं माँ

तुझे सब है पता,है ना माँ

तुझे सब है पता,मेरी माँ

भीड़ में यूँ ना छोडो मुझे

घर लौट के भी आ ना पाऊँ माँ

भेज ना इतना दूर मुझको तू

याद भी तुझको आ ना पाऊँ माँ

क्या इतना बुरा हूँ मैं माँ

क्या इतना बुरा मेरी माँ

जब भी कभी पापा मुझे

जो जोर से झूला झुलाते हैं

माँ मेरी नज़र ढूंढे तुझे

सोचू यही तू आ के थामेगी माँ

उनसे मैं ये कहता नहीं पर

मैं सहम जाता हूँ माँ

चेहरे पे आने देता नहीं

दिल ही दिल में घबराता हूँ माँ

तुझे सब है पता है ना माँ

तुझे सब है पता मेरी माँ

मैं कभी बतलाता नहीं

पर अँधेरे से डरता हूँ मैं माँ

यूँ तो मैं,दिखलाता नहीं

तेरी परवाह करता हूँ मैं माँ

तुझे सब है पता,है ना माँ

तुझे सब है पता,मेरी माँ

भाषा

निज भाषा उन्नति अहै, सब भाषा को मूल । बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को शूल ॥ — भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
जो एक विदेशी भाषा नहीं जानता , वह अपनी भाषा की बारे में कुछ नही जानता । — गोथे
भाषा हमारे सोचने के तरीके को स्वरूप प्रदान करती है और निर्धारित करती है कि हम क्या-क्या सोच सकते हैं । — बेन्जामिन होर्फ
शब्द विचारों के वाहक हैं ।
शब्द पाकर दिमाग उडने लगता है ।
मेरी भाषा की सीमा , मेरी अपनी दुनिया की सीमा भी है। - लुडविग विटगेंस्टाइन
आर्थिक युद्ध का एक सूत्र है कि किसी राष्ट्र को नष्ट करने के का सुनिश्चित तरीका है , उसकी मुद्रा को खोटा कर देना । (और) यह भी उतना ही सत्य है कि किसी राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को हीन बना देना ।
..(लेकिन) यदि विचार भाषा को भ्रष्ट करते है तो भाषा भी विचारों को भ्रष्ट कर सकती है । — जार्ज ओर्वेल
शिकायत करने की अपनी गहरी आवश्यकता को संतुष्ट करने के लिए ही मनुष्य ने भाषा ईजाद की है. -– लिली टॉमलिन
श्रीकृष्ण ऐसी बात बोले जिसके शब्द और अर्थ परस्पर नपे-तुले रहे और इसके बाद चुप हो गए। वस्तुतः बड़े लोगों का यह स्वभाव ही है कि वे मितभाषी हुआ करते हैं। - शिशुपाल वध