Monday, March 24, 2008

स्पर्श...

वो उष्मा थी या ऊर्जा नहीं जानता बस एक स्पर्श से मैंने ख़्वाहिशों को जलते देखा है एक आग जो राख नहीं करती मैंने दिल के पत्थर को कुंदन में बदलते देखा हैवो हँसती है तो सूखी नदी भी उन्मादित होकर बह उठती हैवो उदास थी........ मैंने समन्दर को सिकुड़ते देखा हैवो छू ले तो पत्थर भी जी उठे उसकी नजदीकी को मदहोशऔर दूरी को तड़पते हुए देखा हैमैं उसे देखूँ या हवाओं को मैंने साँसों को रुकते और तूफानों को पलटते हुए देखा हैउस एक स्पर्श में न जाने क्या जादू थामैंने रात भर खुद को छूकर देखा है.............

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