Monday, March 24, 2008
बहुत खोया हैं मैने, जिन्दगी को.....
बहुत खोया हैं मैने, जिन्दगी को जिन्दगी के वास्तेमगर पायी नहीं कोई खुशी इस जिन्दगी के वास्तेभटकता फिर रहा हूँ मैं, यहाँ रिश्तो के जंगल मेंन इसको पा सका अब तक,इस दुनिया के समुन्दर मेंमेरे हालत पहले से भी बदतर हों गये याराबहुत अरसा लगेगा रात से अब सहर होने मेंबहुत रोया यहाँ मैं ,आदमी बन आदमी के वास्ते मगर पाया नहीं ..........................................हैं काफी वक्त खोया बुत यहाँ अपना बनाने में नजर में भा सका न ये किसी के इस जमाने में किया जज्बात के बाजार में सौदा बहुत यारा कहीं पे रहा गयी कोई कमी इसको सजाने मेंबहुत तडफा यहाँ इन्सान बन इंसानियत के वास्तेमगर पाया नहीं
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